सिगरेट मेरा कफ़न

चरस मेरी जिंदगी
और
सिगरे मेरा कफ़न
जिस मिट्टी से बनी चिलम...
उसी मिट्टी में दफ़न,
सुट्टे उड़ा ले, ज़िन्दगी के मज़े उड़ा ले,
मर गया तो कब्र के हवाले,
फिर कौन बोलेगा....
उठ यार एक कस और लगा ले...

Comments

  1. पंकज जी बहुत ही खूबसूरत कविता लिखी है। आपने बहुत ही अच्छे तरीके पुरे रूप को समझाया है । आपकी यह रचना बहुत अच्छी है। आप शब्दनगरी पर भी ऐसी रचनाएं लिख सकते हैं। वहां पर भी तलब ऐसी की फ्लाइट में चुपके से फूंक ली सिगरेट , उसके बाद जो हुआ जैसे लेख पढ़ व् लिख सकते हैं।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

★महारानी लक्ष्मीबाई-(झाँसी की रानी)★

कहानी अनजानी सी !

लड़की अपने भाई का तहे दिल से शुक्रिया अदा कर रही थी!!