उम्मीद तो रखे पर दबाव ना डालें...!!
अपनी ही कलम से पंकज झाँ किसी शहर में एक महिला थी... वह शादीशुदा थी और उसकी 16 साल की एक बच्ची भी थी. उसके पति दूसरे शहर में नौकरी करते थे. वह महिला बिलकुल आम अभिभावकों की तरह थी उसने अपनी बेटी से बड़ी उम्मीदें लगा रखी थी और बेटी की छोटी सी गलती भी उससे बर्दाश्त नहीं होती थी. जब बेटी की परीक्षाएं चल रही थी तब माँ ने उसे ताकीद कर दी थी उसे मेरिट लिस्ट में आना ही हैं. मेरिट से कम कुछ भी स्वीकार नहीं होगा, यहाँ तक की प्रथम श्रेणी भी फ़ैल होने की तरह मानी जाएगी. लड़की मेधावी थी लेकिन थी तो किशोरी ही. जब उम्मीदों का दबाव बढ़ा तो वह परेशान हो गयी. जैसे तैसे परीक्षाएं ख़त्म हुई और अब रिजल्ट का इंतज़ार होने लगा. आखिर वह दिन आ ही गया. माँ की उम्मीद शिखर पे थी लेकिन बेटी का हौसला रसातल में जा पहुंचा था. माँ को सुबह सुबह काम पर जाना था सो बेटी रिजल्ट लेने गयी और माँ अपने ऑफिस. ऑफिस से उसने कई बार घर पर फोन लगाया लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया. हैरान परेशान माँ भोजन अवकाश में घर पहुंची. उसने देखा की दरवाजे की कुण्डी चढ़ी हुई थी. उसे लगा की बेटी अपनी सहेलियों के साथ घूम फिर रही होग