★इक रोज★
उसने ही दिल
चुराया था इक रोज
मुझको दिवाना बनाया था इक रोज
नजरो का तीर चलाया था इक रोज
उसने ही तो भाइयोँ से पिटवाया था इक रोज
फिर खुद ही आकर होले होले मरहम लगाया था इक रोज*
साँस भी रुक-रुक के चलती थी
उसके सामनेआने से मेरी साँसो पे उसने क्या जादु चलाया था इक रोज मोहब्बत मे
डुबाया था इक रोज मैनेँ उसका प्यार
पाया था इक रोज
उसने ही तो ठुकराया था इक रोज
उसने ही तो अपने हाथो से
चेहरा छुपाया था इक रोज
जुल्फो का बादल हटाया था इक रोज
उसने ही तो सिकायतो का ढेर लगाया था इक
रोज
और खुद ही आँसुओ का समन्दर
बहाया था इक रोज
मुझको बहुत तडपाया था इक रोज
उसने ही तो मुझे ठुकराया था इक रोज
कमियाँ शायद मुझमे पाया था इक रोज
क मैनेँ भी उसके जाने के
बाद आँसु खुब बहाया था इक रोज कुछ
हासिल न हो पाया था इक रोज
उसने ही तो मैखाना दिखाया था इक रोज
अपने हाथो सेँ बस इक घुट पिलायाँ था इक
रोज
उसने ही दर्द कम करने का सलिका मैखाना ही बताया था इक रोज
अब तो डर लगता है क्योकिँ मैने बार-
बार
इक ही शक्स से दर्द खाया था इक रोज
कभी-कभी जख्म हो जाते है हरे जिस जख्म
को सिद्दत से दफनाया था इक रोज अब
तो मर-मर के जी रहा हुँ उसके लिए जिसने मुझे
ठुकराया था इक रोज......
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